एक दिन बीरबल को किसी काम के लिए काबुल जाना पड़ा। वहां उनका पहनावा और चाल-चलन देखकर लोगों को उनका परिचय जानने की अच्छा हुई।
खोजबीन करते लोगों को उनका दिल्ली से आना और भेदिया होना मालूम हुआ। उस देश के बादशाह को उसकी खबर दी गई। बादशाह ने उनको तुरन्त बुलाया और पूछा - 'तू कौन है?'
बीरबल ने कहा - 'मैं यात्री हूं। नए-नए नगरों को देखने की इच्छा से देश-देश में फिरता हूं।'
बीरबल बोले- 'जहांपनाह! आप तो पूर्णिमा के चंद्रमा के समान हैं और हमारा बादशाह दूज के चांद के बराबर है।'
काबुल का बादशाह यह सुनकर बहुत खुश हुआ और बीरबल को छोड़ देने का हुक्म देकर बड़े आदर के साथ अपनी सभा में बैठने का स्थान दिया और सभा खत्म होने पर बीरबल को वस्त्र और आभूषण देकर विदा किया। जब बीरबल लौटकर दिल्ली आए तो घरवालों के अनुरोध पर उन्होंने काबुल के सब समाचार उन्हें बताए। यह बात फैलती-फैलती बीरबल के शत्रुओं तक पहुंची और उन्होंने अकबर बादशाह के कान भर दिए।
दूसरे दिन जब दरबार भर गया तब अकबर बादशाह ने बीरबल से पूछा- 'काबुल का सारा हाल विस्तारपूर्वक बताओ?'
बीरबल ने शुरू से लेकर अंत तक जो हुआ था, सब कह सुनाया। जब बादशाह ने काबुल के बादशाह को पूर्णिमा के चन्द्रमा के समान बड़ा और अपने लिए दूज के चांद के समान सुना तो उन्होंने इसका कारण पूछा।
बीरबल ने तुरंत कहा - ''हुजूर! पूर्णमासी का चन्द्रमा चाहे कितना ही बड़ा क्यों न हो, परन्तु उसको कोई नहीं मानता और इसके अतिरिक्त वह दूसरे दिन से ही घटने लगता है जबकि दूज का चांद यधपि छोटा होता है तथापि हिन्दू और मुसलमान सब लोग बड़े प्रेम से उसके दर्शन करते हैं। उगते हुए चन्द्रमा को देखने के लिए कैसे आतुर होते हैं। मुसलमानी महीने का आरम्भ दूज से होता है, नौकर लोग दूज को शुभ मानकर उसी दिन से कार्य आरम्भ करते हैं और सबसे बढ़कर यह है कि वह प्रतिदिन बढ़ता है। अब आप ही बताइए कि काबुल के बादशाह को पूर्णिमा का और आपको दूज का चन्द्रमा बताने में किसकी बड़ाई हुई?''
इस पर अकबर बादशाह बहुत प्रसन्न हुए और सभासद उनकी बुद्धि की प्रशंसा करने लगे
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