Incredible Sanskrit Shlokas |
गच्छन् पिपिलिको
याति योजनानां शतान्यपि ।
अगच्छन् वैनतेयः
पदमेकं न गच्छति ॥
Translitt:-
Gachchan yojnanan shatanyapi pipiliko yāti |
Agachchan want padmekan na gacchati ||
भावार्थ : लगातार चल रही चींटी सैकड़ों योजनों की
दूरी तय कर लेती है,
परंतु न चल रहा गरुड़ एक कदम आगे नहीं बढ़ पाता
है ।
इस श्लोक में
वस्तुतः वही सीख व्यक्त की गयी है जो कछुए और खरगोश की सुपरिचित कहानी के माध्यम
से बच्चों को बतायी जाती है । किसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए प्रयास का किया जाना
पहली आवश्यकता होती है । उसके पश्चात् ही आवश्यक सामर्थ्य का महत्त्व है ।
सामर्थ्य अधिक होगी तो सफलता शीघ्र और सरलता से मिलेगी, अन्यथा उसमें विलंब और कठिनाई होगी । लेकिन कुछ कर गुजरने
का विचार ही मन में न आवे और व्यक्ति उस दिशा में ही प्रयत्न करने को ही तैयार न
हो तो सफलता की आशा करना मूर्खता कही जायेगी ।
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