"Godan" upanyas - Munshi Premchand
गोदान उपन्यास प्रेमचंद का
अंतिम और सबसे
महत्त्वपूर्ण उपन्यास माना जाता
है।
प्रेमचंद ने
गोदान को 1932 में
लिखना शुरू किया
था और 1936 में
प्रकाशित करवाया था। 1936 में
प्रकाशित गोदान उपन्यास को
हिन्दी ग्रन्थ रत्नाकर कार्यालय
बम्बई द्वारा किया
गया था। संसार
की शायद ही
कोई भाषा होगी,
जिसमे गोदान का
अनुवाद न हुआ
हो। प्रेमचंद का
गोदान, किसान जीवन के
संघर्ष एवं वेदना
को अभिव्यक्त करने
वाली सबसे महत्त्वपूर्ण
रचना है। यह
प्रेमचंद की आकस्मिक
रचना नहीं है,
उनके जीवन भर
के लेखन प्रयासों
का निष्कर्ष है।
यह रचना और
भी तब महत्त्वपूर्ण
बन जाती है,
जब प्रेमचंद भारत
के ऐसे कालखंड
का वर्णन करते
है, जिसमे सामंती
समाज के अंग
किसान और ज़मींदार
दोनों ही मिट
रहे है और
पूंजीवादी समाज के
मज़दूर तथा उद्योगपति
उनकी जगह ले
रहे है। गोदान,
ग्रामीण जीवन और
कृषक संस्कृति का
महाकाव्य कहा जा
सकता है। ग्रामीण
जीवन का इतना
वास्तविक, व्यापक और प्रभावशाली
चित्रण, हिन्दी साहित्य के
किसी अन्य उपन्यास
में नहीं हुआ
है।
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