प्रेमचन्द्र का यह उपन्यास पाँच भागों में विभाजित है।
इस उपन्यास में लाला समरकांत, उनके पुत्र अमरकांत, पुत्रवधु सुखदा, रेणुकांत (सुखदा का पुत्र), पुत्री नैना सकीना, हाफिज़ हलीम और उनके पुत्र सलीम, धनीराम और उनके पुत्र मनीराम, डॉ. शांतिकुमार और स्वामी आत्मानन्द, गूदड़, प्रयाग, काशी, सलोनी और मुन्नी आदि की कहानी है। कर्मभूमि में परिवारों की कथा है। इसमें प्रेमचन्द देशानुराग, समाज- सुधार, मठिरा- निवारण, अछूतोद्धार, शिक्षा, गरीबों के लिए मकानों की समस्या, देश के प्रति कर्त्तव्य, जन- जागृति आदि की ओर संकेत करते हैं। कृषकों की समस्या उपन्यास में है तो, किंतु वह प्रमुख नहीं हो पायी। सम्पूर्ण कथा का कार्य- क्षेत्र प्रधानत: काशी और हरिद्वार के पास का देहाती इलाक़ा है।
इस उपन्यास में लाला समरकांत, उनके पुत्र अमरकांत, पुत्रवधु सुखदा, रेणुकांत (सुखदा का पुत्र), पुत्री नैना सकीना, हाफिज़ हलीम और उनके पुत्र सलीम, धनीराम और उनके पुत्र मनीराम, डॉ. शांतिकुमार और स्वामी आत्मानन्द, गूदड़, प्रयाग, काशी, सलोनी और मुन्नी आदि की कहानी है। कर्मभूमि में परिवारों की कथा है। इसमें प्रेमचन्द देशानुराग, समाज- सुधार, मठिरा- निवारण, अछूतोद्धार, शिक्षा, गरीबों के लिए मकानों की समस्या, देश के प्रति कर्त्तव्य, जन- जागृति आदि की ओर संकेत करते हैं। कृषकों की समस्या उपन्यास में है तो, किंतु वह प्रमुख नहीं हो पायी। सम्पूर्ण कथा का कार्य- क्षेत्र प्रधानत: काशी और हरिद्वार के पास का देहाती इलाक़ा है।
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