रक्षाबंधन और इसे जुड़ी पौराणिक मान्यता

रक्षाबंधन सामाजिक, पौराणिक, धार्मिक तथा ऐतिहासिक भावना के धागे से बना एक ऐसा पवित्र बंधन जिसे जनमानस में रक्षाबंधन के नाम से सावन मास की पूर्णिमा को भारत में ही नही वरन् नेपाल तथा मॉरिशस में
भी बहुत उल्लास एवं धूम-धाम से मनाया जाता है। रक्षाबंधन अर्थात रक्षा की कामना लिए ऐसा बंधन जो पुरातन काल से इस सृष्टी पर विद्यमान है। इन्द्राणी का इन्द्र के लिए रक्षा कवच रूपी धागा या रानी कर्मवति द्वारा रक्षा का अधिकार लिए पवित्र बंधन का हुमायु को भेजा पैगाम और सम्पूर्ण भारत में बहन को रक्षा का वचन देता भाईयों का प्यार भरा उपहार है, रक्षाबंधन का त्योहार।


प्राचीन काल से प्रसंग भले ही अलग-अलग हो परंतु प्रत्येक प्रसंग में रक्षा की ज्योति ही प्रज्वलित होती रही है। पुरातन काल में रक्षा की भावना का उद्देश्य लिए ब्राह्मण क्षत्रिय राजाओं को रक्षा सूत्र बांधते थे, जहाँ राजा और ज़मींदार जैसे शक्तिवान एवं धनवान लोग उन्हे सुरक्षा प्रदान करने के साथ जीवन उपयोगी वस्तुएं भी उपहार में दिया करते थे।  
  • हमारी पौराणिक मान्यता के अनुसार एक बार राजा इन्द्र पर दानवों ने हमला कर दिया जिसमें राजा इन्द्र की शक्ति कमजोर पङने लगी। तब इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी जिनका शशिकला नाम था, उन्होने ईश्वर के समक्ष तपस्या तथा प्रार्थना की। इन्द्राणी की तपस्या से प्रसन्न होकर ईश्वर ने शशिकला को एक रक्षा सूत्र दिया । इन्द्राणी ने उसे इन्द्र के दाहिने हाँथ में बाँध दिया,  इस पवित्र रक्षा सूत्र की वजह से इन्द्र को विजय प्राप्त होती है। जिस दिन ये रक्षासूत्र बांधा गया था उस दिन सावन मास की पूर्णिमा थी। संभवतः इसीलिए रक्षाबंधन का पर्व आज-तक सावन मास की पूर्णिमा को ही मनाया जाता है।

  • पौराणिक कथा का अगर जिक्र करें तो, रक्षाबंधन से जुङा एक और रोचक प्रसंग बहुत महत्वपूर्ण है। एक बार राजा बली अपने यज्ञ तप की शक्ति से स्वर्ग पर  आक्रमण करके सभी देवताओं को परास्त कर देते हैं, तो इन्द्र सहित सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में जाते हैं और राजा बली से अपनी रक्षा की प्रार्थना करते हैं। तब विष्णु जी वामन अवतार में ब्राह्मण के रूप में राजा बली से भिक्षा मांगने जाते हैं और तीन पग भूमि दान में माँगते हैं। राजा बली उन्हे भूमि देने का वचन देते हैं, तभी वामन रूपी विष्णु जी तीन पग में सारा आकाश, पाताल और धरती नापकर राजा बली को रसातल में भेज देते हैं। रसातल में राजा बली अपनी भक्ती से भगवान विष्णु को प्रसन्न करके उनसे वचन ले लेते हैं कि भगवान  विष्णु दिन-रात उनके सामने रहेगें। श्री विष्णु के वापस विष्णुलोक न आने पर परेशान लक्ष्मी जी को नारद जी सलाह देते हैं कि, आप राजा बली को भाई बनाकर उसको रक्षासूत्र बाँधिये। नारद जी की सलाह अनुसार माता लक्ष्मी बली को रक्षासूत्र बाँधती हैं और उपहार में भगवान विष्णु को माँगकर अपने साथ ले जाती हैं। ये संयोग ही है कि इस दिन भी सावन मास की पूर्णीमा थी। आज भी सभी धार्मिक अनुष्ठानों में यजमान को ब्राह्मण एक मंत्र पढकर रक्षासूत्र बाँधते हैं जिसका अर्थ होता है कि-

जिस रक्षा सूत्र से महान शक्तिशाली राजा बली को बाँधा गया था, उसी सूत्र से मैं आपको बाँध रहा हुँ, आप अपने वचन से कभी विचलित न होना।
रक्षाबंधन की परंपरा महाभारत में भी प्रचलित थी, जहाँ श्री कृष्ण की सलाह पर सैनिकों और पांडवों को रक्षा सूत्र बाँधा गया था। जब रक्षाबंधन के प्रचलन की बात की जाती है तो रानी कर्मवती द्वारा हुमायु को भेजे रक्षासुत्र को अनदेखा नही किया जा सकता, जिसे मुगल सम्राट ने समझा और निभाया भी।
आपसी सौहार्द तथा भाई-चारे की भावना से ओतप्रोत रक्षाबंधन का त्योहार हिन्दुस्तान में अनेक रूपों में दिखाई देता है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पुरूष सदस्य परस्पर भाई-चारे के लिए एक दूसरे को भगवा रंग की राखी बाँधते हैं। राजस्थान में ननंद अपनी भाभी को एक विशेष प्रकार की राखी बाँधती है जिसे लुम्बी कहते हैं। कई जगह बहने भी आपस में राखी बाँध कर एक दूसरे को सुरक्षा को भरोसा देती हैं। इस दिन घर में नाना प्रकार के पकवान और मिठाईयों के बीच घेवर (मिठाई) खाने का भी विशेष महत्व होता। रक्षा सूत्र के साथ अनेक प्रान्तों में इस पर्व को कुछ अलग ही अंदाज में मनाते हैं। महाराष्ट्र में ये त्योहार नारियल पूर्णिमा या श्रावणी के नाम से प्रचलित है। तमिलनाडु, केरल, महाराष्ट्र और उङिसा के दक्षिण भारतीय ब्राह्मण इस पर्व को अवनी अवित्तम कहते हैं। कई स्थानो पर इस दिन नदी या समुद्र के तट पर स्नान करने के बाद ऋषियों का तर्पण कर नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। रक्षाबंधन के इस पावन पर्व का महत्तव इसलिए और अधिक हो जाता है क्योकि इसी दिन अमरनाथ की यात्रा सम्पूर्ण होती है, जिसकी शुरुवात गुरु पूर्णिमा से होती है।
ये कहना अतिश्योक्ति न होगी कि, रक्षा की कामना लिये भाई-चारे और सदभावना का ये धार्मिक पर्व सामाजिक रंग के धागे से बंधा हुआ है। जहाँ लोग जातिय और धार्मिक बंधन भूलकर एक रक्षासूत्र में बंध जाते हैं।
“कच्चे धागे से बनी पक्की डोर है राखी।
प्यार और मिठी शरारतों के साथ, बहन की रक्षा का अधिकार है राखी।
जात-पात , भेद-भाव को मिटाती, एकता का पाठ है राखी।
भाई-बहन के विश्वास और ज़जबात का पवित्र रूप है राखी।“
रक्षाबंधन की हार्दिक बधाई
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