Incredible Sanskrit Shlokas |
कश्चित् कस्यचिन्मित्रं, न कश्चित् कस्यचित् रिपु:।
अर्थतस्तु निबध्यन्ते, मित्राणि रिपवस्तथा ॥
Translitt:- Kaścit kasyachinmitran, not kaścit kasyachit ripu.
Arthatastu nibadhyante, mitrani ripvastatha ||
भावार्थ :
न कोई किसी का
मित्र है और न ही शत्रु, बस कार्यवश ही लोग
मित्र और शत्रु बनते हैं ।
Translation:
No one's friends nor enemies, just friends and foes alike,
the business people are formed.
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! अपनी प्रतिक्रियाएँ हमें बेझिझक दें !!