अकिञ्चनस्य दान्तस्य, शान्तस्य समचेतसः।
मया सन्तुष्तमानसः , सर्वाः सुखमया दिशाः॥
Akinychanasya dantasya Shantasya samchetsaah.
Mayā santushtamansaah, Sarvāḥ sukhmaya dishaah |05|
सुभाषित संस्कृत श्लोक 05 का भावार्थ:
मनुष्य को ऋषियो की तरह सभी दिसाये समान लगेगी यदी उसके पास रखने के लिए कुछ ना हो, नियंत्रित हो, शांत हो, समान चित्त वाला हो, मन से संतुष्ट हो |
English Translation Of Subhashitani Shloka #05-
A man feels all the directions pleasant like Sages if he have nothing to keep, controlled, peaceful, even-tempered and self-content.
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जवाब देंहटाएंReally helpful to stay away of stess
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