यावद्वित्तोपार्जनसक्तः तावन्निजपरिवारो रक्तः ।
पश्चाज्जर्जरभूते देहे वार्तां कोऽपि न पृच्छति गेहे ॥
- भजगोविन्द स्तोत्र
Translitt:-
Yavadvittoparjansaktaah tavannijparivaro raktaḥ.
Pashchajjarjarbhute dehe koऽP prichchati winter not gehe ||
- Bhajagovinda stotra
भावार्थ :-
जब तक व्यक्ति धनोपार्जन में समर्थ है,
तब तक परिवार में सभी उसके प्रति स्नेह प्रदर्शित करते हैं
परन्तु अशक्त हो जाने पर उसे सामान्य बातचीत में भी नहीं पूछा जाता है ।
Translation:-
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें
आपकी टिप्पणियाँ एवं प्रतिक्रियाएँ हमारा उत्साह बढाती हैं और हमें बेहतर होने में मदद करती हैं !! अपनी प्रतिक्रियाएँ हमें बेझिझक दें !!