- चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।
- माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।
- माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
- तिनका कबहुँ ना निंदये, जो पाँव तले होय ।
- गुरु गोविंद दोनों खड़े, काके लागूं पाँय ।
- सुख मे सुमिरन ना किया, दु:ख में करते याद ।
- साईं इतना दीजिये, जा मे कुटुम समाय ।
- धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय ।
- कबीरा ते नर अँध है, गुरु को कहते और ।
- माया मरी न मन मरा, मर-मर गए शरीर ।
- रात गंवाई सोय के, दिवस गंवाया खाय ।
- दुःख में सुमिरन सब करे सुख में करै न कोय।
- बडा हुआ तो क्या हुआ जैसे पेड़ खजूर।
- साधु ऐसा चाहिए जैसा सूप सुभाय।
- तिनका कबहुँ ना निंदिये, जो पाँव तले होय ।
- जो तोको काँटा बुवै ताहि बोव तू फूल।
- उठा बगुला प्रेम का तिनका चढ़ा अकास।
- सात समंदर की मसि करौं लेखनि सब बनराइ।
- साधू गाँठ न बाँधई उदर समाता लेय।
- माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फेर ।
कबीर के दोहे सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं।
जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
कर का मन का डार दे, मन का मनका फेर ॥
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
बलिहारी गुरु आपनो, गोविंद दियो मिलाय ॥
कह कबीर ता दास की, कौन सुने फरियाद ॥
मैं भी भूखा न रहूँ, साधु ना भूखा जाय ॥
माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय ॥
हरि रूठे गुरु ठौर है, गुरु रूठे नहीं ठौर ॥
आशा तृष्णा न मरी, कह गए दास कबीर ॥
हीरा जन्म अमोल था, कोड़ी बदले जाय ॥
जो सुख में सुमिरन करे दुःख काहे को होय ॥
पंथी को छाया नही फल लागे अति दूर ॥
सार-सार को गहि रहै थोथा देई उडाय॥
कबहुँ उड़ आँखो पड़े, पीर घानेरी होय ॥
तोहि फूल को फूल है वाको है तिरसुल॥
तिनका तिनके से मिला तिन का तिन के पास॥
धरती सब कागद करौं हरि गुण लिखा न जाइ॥
आगे पाछे हरी खड़े जब माँगे तब देय॥
कर का मन का डार दें, मन का मनका फेर ॥
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