नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान – The Last Statement of Nathuram Godse

नाथूराम गोडसे का अंतिम बयान



नाथूराम जी ने अपने बयान में कहा था – ” सम्मान ,कर्तव्य और अपने देश वासियों के प्रति प्यार कभी कभी हमें अहिंसा के सिद्धांत से हटने के लिए बाध्य कर देता है . में कभी यह नहीं मान सकता की किसी आक्रामक का सशस्त्र  प्रतिरोध करना कभी गलत या अन्याय पूर्ण भी हो सकता है .
प्रतिरोध करने और यदि संभव हो तो ऐसे शत्रु को बलपूर्वक वश में करना को मैं एक धार्मिक और नैतिक कर्तव्य मानता हूँ . मुसलमान अपनी मनमानी कर रहे थे, या तो कांग्रेस उनकी इच्छा के सामने आत्मसर्पण कर दे और उनकी सनक ,मनमानी और आदिम रवैये के स्वर में स्वर मिलाये अथवा उनके बिना काम चलाये .वे अकेले ही प्रत्येक वस्तु और व्यक्ति के निर्णायक थे।
महात्मा गाँधी अपने लिए जूरी और जज दोनों थे .गाँधी जी ने मुस्लिमों को खुश करने के लिए हिंदी भाषा के सौंदर्य और सुन्दरता के साथ बलात्कार किया। गाँधी जी के सारे प्रयोग केवल और केवल हिन्दुओ
की कीमत पर किये जाते थे। जो कांग्रेस अपनी देश भक्ति और समाज वाद का दंभ भरा करती थी . उसी ने गुप्त रूप से बन्दुक की नोक पर पाकिस्तान को स्वीकार कर लिया और जिन्ना के सामने नीचता से
आत्मसमर्पण कर दिया।
मुस्लिम तुष्टिकरण की नीति के कारण भारत माता के टुकड़े कर दिए गय और 15 अगस्त 1947 के बाद देश का एक तिहाई भाग हमारे लिए ही विदेशी भूमि बन गई। नेहरु तथा उनकी भीड़ की स्वीकारोक्ति के साथ ही एक धर्म के आधार पर अलग राज्य बना दिया गया .इसी को वे बलिदानों द्वारा जीती गई स्वतंत्रता कहते है। औरकिसका बलिदान ?
जब कांग्रेस के शीर्ष नेताओ ने गाँधी जी के सहमती से इस देश को काट डाला ,जिसे हम पूजा की वस्तु मानते है तो मेरा मस्तिष्क भयंकर क्रोध से भर गया .मैं साहस पूर्वक कहता हूँ की गाँधी अपने कर्तव्य में असफल हो गए। उन्होंने स्वयं को पाकिस्तान का पिता होना सिद्ध किया।
मैं कहता हूँ की मेरी गोलियां एक ऐसे व्यक्ति पर चलाई गई थी ,जिसकी नीतियों और कार्यो से करोड़ों हिन्दुओं को केवल बर्बादी और विनाश ही मिला। ऐसी कोई क़ानूनी प्रक्रिया नहीं थी जिसके द्वारा उस अपराधी को सजा दिलाई जा सके, इसीलिए मैंने इस घातक रास्ते का अनुसरण किया।
मैं अपने लिए माफ़ी की गुजारिश नहीं करूँगा ,जो मैंने किया उस पर मुझे गर्व है . मुझे कोई संदेह नहीं है की इतिहास के इमानदार लेखक मेरे कार्य का वजन तोल कर भविष्य में किसी दिन इसका सही मूल्यांकन करेंगे। जब तक सिन्धु नदी भारत के ध्वज के नीचे से ना बहे तब तक मेरी अस्थियो का विसर्जन मत करना।
नोट – यह पोस्ट "अपनी कहानी" वेबसाइट से ली गए हैं, अतः Lets-Inspire ने इस बयान की सत्यता की जांच नहीं की है, अगर किसी मित्र को इसमें कुछ आपत्तिजनक लगे तो हमें बताएं।




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1 टिप्पणियाँ:

  1. मुझे गाँधी से नफ़रत हे। देश की आज़ादी में भगत सिंह राजगुरु सुखदेव आज़ाद मंगल पांडेय लष्मी बाई को भुला दिया गया। मात्र ये कहना की दे दी हमें आज़ादी बिना खडग बिना ढाल, मन में आग सी लगती है हर्षित जी, गाँधी हमेशा मुसलमानो का हितेषी और हिन्दू विरोधी था। नाथूराम गोडसे ने गांधी को नही मारा होता तो आज लाहौर से ढाका तक दिल्ली से निकलती हुयी मुसलमानो की बस्ती होती जो गाँधी और जिन्ना का सपना था । मन से नहीं कह रहा हु तथ्य है । मुझे तो आज तक नही समाज आता की किसने ऐसे व्यक्ति को राष्ट्र पिता बना दिया जो भगत सिंह की फांसी की सजा न रुकवा सके, जब वीर सावरकर ने 11 दिन तक गाँधी जी के घर के बहार अनसन किया के वे भगत सिंह की फांसी को अंग्रेज सर्कार से कह कर उम्र कैद या और कोई सजा में बदलवा दे तो गाँधी ने कहा कि जिसने हिंसा की हे उसे सजा मिलनी ही चाहिए। क्या कोई आपकी माँ को बंदी बना ले और उसे आप अहिंसा से मानाने जायेंगे । ऐसा होता की अगर अहिंसा ही सब बातों का निष्कर्ष होती तो श्री कृष्णा कभी अर्जुन को हथियार उठाने नहीं देते वे भी कौरवो के महल के बहार अर्जुन के साथ अहिंसा आंदोलन करते। कास में नाथूराम गोडसे होता

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