भारतीय दर्शन का प्रचार करने स्वामी विवेकानंद अमरीका गए। कुछ दिन भ्रमण करते उनकी जमा-पूंजी खत्म हो गई। एक व्यक्ति ने बोस्टन जाने का किराया दिया और विश्व धर्म सम्मेलन के एक सदस्य के नाम एक पत्र भी। वह पत्र मार्ग में कहीं खो गया। ठंड के मारे उन्हें लकड़ी के बक्स में रात गुजारनी पड़ी। वे सुबह पैदल चल पड़े। थककर एक आलीशान भवन के निचे बैठ गए और सोचने लगे, 'अब क्या करूँ? पत्र भी खो गया, धर्म सम्मेलन में प्रवेश कैसे हो?'
उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की। उस भवन से एक संभ्रान्त महिला इस दिव्य मुख मंडल वाले संन्यासी को एकटक देख रही थी। उसने स्वामीजी को ऊपर बुलाया। यह महिला क्षीमती एच.डब्ल्यू. हैल थीं, जिनकी पहुँच इस विश्व-सम्मेलन के सदस्यों तक थी। स्वामीजी को सम्मेलन में सही प्रतिनिधित्व प्राप्त हो गया।
उन्होंने ईश्वर से प्रार्थना की। उस भवन से एक संभ्रान्त महिला इस दिव्य मुख मंडल वाले संन्यासी को एकटक देख रही थी। उसने स्वामीजी को ऊपर बुलाया। यह महिला क्षीमती एच.डब्ल्यू. हैल थीं, जिनकी पहुँच इस विश्व-सम्मेलन के सदस्यों तक थी। स्वामीजी को सम्मेलन में सही प्रतिनिधित्व प्राप्त हो गया।
निष्कर्ष:
अध्यात्म में बड़ी शक्ति है। इसके द्वारा मनुष्य ऐसी आत्मिक शक्तियों को प्राप्त कर सकता है, जिनके माध्यम से बाधाओं पर विजय प्राप्त करके लक्ष्य की सिद्धी सुगमता से हो सकता है।
वह व्यक्ति परमात्मा की शक्ति प्राप्त करता है, जिसका ह्नदय अध्यात्म के प्रति विश्वास से भरा हुआ है।
-ऋग्वेद
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